सोमवार, 4 अप्रैल 2011

क्या ...

क्या चाहूँ , तेरे काँधे का एक कोना ...
क्या मांगू , तेरे साथ का वो सोना ...
क्या कहूँ , तेरी तस्वीर का वो बोलना ...
क्या देखूं , तेरा सपनो के पट खोलना ...
क्या सुनूँ , तेरा मेरे कान में कुछ कह जाना ...
क्या सोचूं , तेरा जुल्फें खोल मेरे ख्वाबों में आना ...
क्या ढूँढू , तेरी झुकी पलकों तले वो खजाना ...
क्या छूँऊँ , तेरा मेरा हाथों को सहला जाना ...
क्या रोकूँ , तेरा आँख खुलते ही चला जाना ...

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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