रविवार, 13 मार्च 2011

कोई इधर आता नहीं |

मेरी आँखें , अब कमज़ोर हो चली हैं |
साफ़ नज़र आता नहीं |
मेरी जुबां , अब लड़खड़ाती है |
साफ़ बोला जाता नहीं |

मेरे आंसू , गालों पर छपे हैं |
कोई पोंछ जाता नहीं |
मेरी गली , अब सूनी हो चली है |
कोई इधर आता नहीं |

इस दर पर भी कभी रौनक थी |
कोई अब चेहचहाता नहीं |
कभी मनती थी यहाँ ईद - दिवाली |
कोई अब सजाता नहीं |

मुझे याद है वो पुरानी धुन |
कोई अब बजाता नहीं |
ये सूनापन, ये एकाकी |
कोई अब मिटाता नहीं |

मेरी गली , अब सूनी हो चली है |
कोई इधर आता नहीं |
कोई इधर आता नहीं |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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