दो नैना हैं खुली किताब से ,
इन नैनो से बात करो ,
इन नैनो की बात करो |
झुकते , उठते ,कहते सुनते ,
यादों की सौगात भरो ,
इन नैनो की बात करो |
कितने भोले , कितने पाक हैं ये ,
नैनो से ही एहसास करो ,
इन नैनो की बात करो |
हर एक अदा एक नज़म है इनकी ,
इनपर भी शायरी गुलज़ार करो ,
इन नैनो की बात करो |
थके हुए हैं पलके उठाये ,
इनपर भी थोड़ा गौर करो ,
इन नैनो की बात करो |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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