गुरुवार, 31 मार्च 2011

सा |

मन उलझा है ,
कोने में लगे जालों सा |
समय न कटता है ,
दिन भी लगे सालों सा |
सब नीरस सा है ,
सूखे पेड़ कि छालों सा |
उत्साह साथ छोड़ गया ,
गिरते पकते हुए बालों सा |
आत्म विश्वास बिखरा हुआ है ,
लड़ाई में टूटी ढालों सा |
आज भले ही लगता हूँ ,
मैं बुरे हालों सा |
पर कल फिर उठूँगा ,
एक चुनौती , कई सवालों सा |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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