कभी भुला न पाऊं जो,
तुम आज वो अंदाज़ न दो |
इस रात की तन्हाई में ,
तुम आज मुझे आवाज़ न दो |
ज़ेहन में बजते रहें देर तक ,
तुम आज वो साज़ न दो |
भूले बिसरे मेरे गीतों को ,
तुम आज अपनी आवाज़ न दो |
कितनी हैं हमे बेकरारी ।
तुम आज इसका हिसाब न दो |
दिल में हैं जो आरज़ू,
तुम आज उन्हें आवाज़ न दो|
मेरे फ़िज़ूल की ख़्वाबों में ,
तुम आज अपना एहसास न दो |
सोने ही दो उन ख़्वाबों को ,
तुम आज उन्हें आवाज़ न दो |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
आपके लाजवाब जुमलों की तारीफ़ में कुछ कहने की ध्रष्टता कर रहा हूँ
जवाब देंहटाएंकैसे न सराहें इन लफ़्ज़ों को,
कैसे इन्हें हम दाद न दें |
शायर के नायब नगीनों को,
किस तरह अपनी आवाज़ ने दें||
एक शायर दूसरे से और क्या कहता ?
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये, तो जहाँ याद रखता |
आपने पढ़ा , शुक्रिया ,
वरना लिख कर यहीं पड़ा रहता |