शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

हम तुम ...

आजा रात की बाहों में झूलें ,
आजा चाँद से किस्से पूछें |
बात बात में पहेलियाँ बनाकर ,
आजा उन पहेलियों को बूझें |

कुछ तुम कह दो मुझसे ,
कुछ मैं कह दूँ तुमसे|
चलते चलते , कहते सुनते ,
एक ग़ज़ल बन जाए हमसे |

आजा सपनो की पतंग उड़ायें ,
आँखों आँखों में पेंच लड़ाएं |
झूमती रहे पतंग हमारी ,
कभी डोर न टूटने पाए |

आजा हाथों में हाथ लेकर ,
तेरा खुबसूरत साथ लेकर |
हम मीलों चलते जाएँ ,
वफ़ा के ज़ज्बात लेकर |

आज हम ये दुआ करें ,
हमेशा यूँही पास हुआ करें |
एक दूजे के नाम की ,
हमारी साँसें हुआ करें |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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