गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

पुरानी अल्बम...

कल परसों में अपनी पुरानी रैक टटोल रहा था तो मुझे वहां एक पुरानी एल्बम दिखी |
वो बहुत पुरानी एल्बम थी , जिससे खुद ही नहीं , बल्कि चित्रों में अंकित चेहरों से भी एक परत उतर चुकी थी |
उसको देख कुछ लिखने का मन किया , मन किया की उन भावनाओं को शब्दों में ले आऊँ, किन्तु मात्र प्रयास ही कर पाया , शेष निम्न है |

मैं, मैं तुम्हारा अतीत हूँ ,
सुनकर भुलाया संगीत हूँ |
सुख - दुःख की संगम हूँ ,
एक पुरानी अल्बम हूँ |

कैसे तुमने कैद किये थे ,
मुझमें वो अपने पल विपल |
तुम बहुत आगे आ गए,
और मैं हूँ एक बीता कल |

मुझमें कुछ चेहरे , कुछ रिश्ते ,
सहमे से खड़े हैं |
तुम्हारी आस में उनके नैन ,
मूर्त में पत्थर से जड़े हैं |

मेरी तरह रिश्ते भी ,
सील गए हैं शायद |
या फासलों में बढ़ कई ,
मील गए हैं शायद |

कहीं ख़ुशी के पल भी हैं ,
जहाँ तुम हंस रहे हो |
बहुत दिनों बाद देखा तुम्हें हँसता ,
लगा, कभी तो तुम खुश रहे हो |

कुछ होली के रंगीन चेहरे ,
जिनका रंग अब उड़ चुका है |
कुछ पुरानी पहचाने ,
जिनसे रास्ता मुड चुका है |

कभी दिवाली की रौनक ,
अब कहाँ ऐसी होती है |
तब ख़ुशी होती थी असीम ,
अब किराए पर होती है |

कहीं कुछ पुरानी चीज़ें ,
जिनपर तुम्हे नाज़ था |
सब कैद हैं यहाँ एक युग में ,
कभी, उनका क्या अंदाज़ था !

मुझे खोला , तो मैं बोल पड़ी ,
वरना मैं चुप हरदम हूँ |
ये तुम्हारा अतीत बोलता है ,
मैं तो बस एक अल्बम हूँ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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