सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

बैठ जाता हूँ ...

रोज़ शाम हो तेरी खुशबू ,
पहचानने बैठ जाता हूँ |
रेत रेत कर तेरे ख्वाब,
मैं छानने बैठ जाता हूँ |

पहलूँ में ले तुझे तेरे,
हाथ थामने बैठ जाता हूँ |
जला जलाकर तुझे ऐ शमा ,
मैं बुझाने बैठ जाता हूँ |

कुछ सवाल कर तुझसे ,
जवाब जानने बैठ जाता हूँ |
तुझे बना के एक आइना ,
मैं सामने बैठ जाता हूँ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

1 टिप्पणी: