रोज़ शाम हो तेरी खुशबू ,
पहचानने बैठ जाता हूँ |
रेत रेत कर तेरे ख्वाब,
मैं छानने बैठ जाता हूँ |
पहलूँ में ले तुझे तेरे,
हाथ थामने बैठ जाता हूँ |
जला जलाकर तुझे ऐ शमा ,
मैं बुझाने बैठ जाता हूँ |
कुछ सवाल कर तुझसे ,
जवाब जानने बैठ जाता हूँ |
तुझे बना के एक आइना ,
मैं सामने बैठ जाता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बहुत खूब!
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