मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

कोई...

कोई दिखता है , रोज़ सपनो में |
पर भोर तक चाँद के साथ ,
वो चला जाता है |

कभी चेहरा नहीं देखा उसका |
पर अपनी आवाज़ ज़रूर ,
वो सुना जाता है |

उसके ज़ेवर भी हैं कुछ ,
जों जुगनुयों से जलते - बजते हैं |
उन्हें इतराकर हिला जाता है |

उसके आने की आहट नहीं होती |
जाने पर किवाड़ न लड़ता |
कैसे उन्हें मिला जाता है ?

उसने नाम नहीं बताया कभी |
पर मुझसे करीबी का एहसास ,
हमेशा मुझे दिला जाता है |

अधसोई आँखों से ढूंढता हूँ रातों में |
वो जाने क्या मिलाकर नींद में ,
रोज़ मुझे पिला जाता है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

1 टिप्पणी:

  1. प्रशंसनीय पोस्ट .

    कृपया ग्राम चौपाल में पढ़े - " भविष्यवक्ता ऑक्टोपस यानी पॉल बाबा का निधन "

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