कोई दिखता है , रोज़ सपनो में |
पर भोर तक चाँद के साथ ,
वो चला जाता है |
कभी चेहरा नहीं देखा उसका |
पर अपनी आवाज़ ज़रूर ,
वो सुना जाता है |
उसके ज़ेवर भी हैं कुछ ,
जों जुगनुयों से जलते - बजते हैं |
उन्हें इतराकर हिला जाता है |
उसके आने की आहट नहीं होती |
जाने पर किवाड़ न लड़ता |
कैसे उन्हें मिला जाता है ?
उसने नाम नहीं बताया कभी |
पर मुझसे करीबी का एहसास ,
हमेशा मुझे दिला जाता है |
अधसोई आँखों से ढूंढता हूँ रातों में |
वो जाने क्या मिलाकर नींद में ,
रोज़ मुझे पिला जाता है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
प्रशंसनीय पोस्ट .
जवाब देंहटाएंकृपया ग्राम चौपाल में पढ़े - " भविष्यवक्ता ऑक्टोपस यानी पॉल बाबा का निधन "