रविवार, 3 मई 2009

प्रेम , तुम थम जाओ

अभी बहुत व्यस्त हूँ , मेरे रस्ते में मत आओ |
सुनो प्रेम , तुम थम जाओ |

तुम में बह जाना , भला तो है , तुम्हारा न होना , खला तो है |
पर अभी सही समय नही , बहुत कुछ जीवन में करने को , बचा तो है |

कर लूँ पूरी अभिलाषा अपनी ,फिर तुम्हारी सुनूंगा |
तुम्हारे बाग़ से एक फूल , भी तभी चुनुँगा |

एक स्थिति के बाद ही , यह सब अच्छा लगता है |
वरना लगता , है तो पकवान , पर रह गया कच्चा है |

इसीलिए चाहता हूँ , मेरे विचारों में जरा कम आओ |
सुनो प्रेम , तुम थम जाओ |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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