सुबेर साम ढूँढनु छ ,
कोणा कोणा देख्णु छ |
जु म्यार जिकुड़ी मा बस ग्यायी ,
कख छ व् छोरी , कख छ वु ?
सौ मुखडी देखिक ,
कुई नि पसंद ऐई |
जु देखि येकि मुखडी ,
जिकुड़ी धक् हुए ग्यायी |
अब सुदि बैठि ,
वैकु नां रटणु छ |
रात बिटिक सुबेर तलक ,
सुंदर सुपना आणु छ |
बिजां चतुर छोरी छ ,
दूर बीटी मुस्कांदी |
पास आन्दु जु मि कदी ,
टप जानी कख लुक जांदी |
यारों कुई छुई ,
हुई नि वैकि गैल |
चल गयुं जनुअरी ,
चल गयुं अप्रैल |
अब प्राण मेरा ,
तड़पणु बिना वैकु |
मिल जाई वु मितैं ,
कख छ व् छोरी , कख छ वु ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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