अब न कहूँगा फ़िर से ,
जो मैं कह चुका |
कितना बर्दाश्त करूँ ,
मैं बहुत सह चुका |
बेकार के ख्यालों में ,
क्यूँ में डूबता रहा ?
हाँ हाँ , सच है यह ,
क्यूँ मैं कहता रहा ?
कितना पागलपन लिए ,
मैं फिरता रहा |
माफ़ करना , उस पागलपन के ,
छन्द लिखता रहा |
अब कुछ न हो सकेगा मुझसे ,
बहुत पानी बह चुका |
अब न कहूँगा फ़िर से ,
जो मैं कह चुका |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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