चला कहाँ से ?
कहाँ खड़ा है ?
दे विचार एक तू |
पीछे मुड़कर देख तू |
तेरे साथ कितने चले ,
लेकिन सब भागे नही |
तू भागा बहुत तेज़ ,
पर है सबसे आगे नही |
इतना आगे तू आया ,
क्या यह इतना आसान है ?
पीछे होकर तुझसे किसीने ,
क्या किया एहसान है ?
हमेशा तू हारा नही ,
कभी हुई तेरी जीत भी है |
उन्ही जीतों के लम्हों से ,
आज जुड़कर देख तू |
उतार फेंक यह उदासी ,
हैरान हो मत झेंप तू |
यह तेरा ही बीता कल है ,
ज़रा पीछे मुड़कर देख तू |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
अरे भुला डबराल, ना-ना-ना- ना.... ये तुम जैसे युवा कवियों का काम नहीं पीछे मुड़कर देखना !
जवाब देंहटाएंपर्वत खडा निगाहों में,
नदियाँ पडी है राहो में,
तर-पार कर इन सबको तुने,
इक नया मुकाम पाना है !
पीछे मुड़कर मत देख मेरे भाई
अभी बहुत दूर तक जाना है !!
राह अपनी सतत चलते जाना
न कही जीत हार का भाव लगाना
फूल मिले या फिर कांटो की सेज,
तुम्हे तो साहित्य-धर्म निभाना है !
पीछे मुड़कर मत देख मेरे भाई
अभी बहुत दूर तक जाना है !!
-गोदियाल
dhanyvaad denu chha bhaiji .
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