कभी अकेले में , जो पूछा ख़ुद से |
इस सवाल पर मौन हूँ मैं |
आख़िर , कौन हूँ मैं ?
बाहर जो दिखता जग को ,
क्या वैसा ही भीतर हूँ मैं ?
इतनी बड़ी है यह दुनिया ,
और कितना गौण हूँ मैं ?
इस विशाल समुद्र में ,
क्या एक लहर हूँ मैं ?
गिरी हो प्रलय की गाज जिस पर ,
क्या उजड़ा वह शहर हूँ मैं ?
हवा से उड़ता रहा ,
क्या एक पतंग हूँ मैं ?
या जो जड़ा रहा ,
वह एक स्तम्भ हूँ मैं ?
अपनी ही नज़र में , कभी नायक ,
कभी खलनायक हूँ मैं |
कौन हूँ मैं आख़िर ,
क्या इसका उत्तर देने लायक हूँ मैं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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