कोई कहे कभी ,
होशियार , तैयार कौन है ?
हटा कर भीड़ को किनारे ,
बोल मैं हूँ |
सोच ले ऐसा ही रहूँगा ,
चाहे जिस हाल में रहूँ |
पूरा करूँगा उसको ,
एक बार जो ठान लूँ |
तेरी जीत न होगी ,
कह , यह कैसे मान लूँ ?
रुको , ज़रा पहले इन ,
रास्तों को पहचान लूँ |
कह , आए जो भी आगे ,
पूरे जोर से टकरा लूँ |
सुन पुकार स्वीकार कर ,
बोल मैं हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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