ज़ोर शोर से , जाने कब से, तैयारी करता रहा ?
छोटे छोटे ही सही , कदम उठा बढ़ता रहा
अब उस तैयारी का इम्तहान आ गया है
साबित कर के दिखा खुदको
वह समय आ गया है !
कितनी बार गिरा है तू , इसका कोई हिसाब नही
पर जिस हिम्मत से उठा है , उसका कोई जवाब नही
अपनी तस्वीर को तू कबसे , रोज़ मिटा - बना रहा है
लहू और पसीने से , हमेशा सना रहा है
उस लहू की गर्मी अब दिखेगी जग को ,
हाँ, वह समय आ गया है
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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