मुझे यही लगता रहा ,
अकेला चलना दिन रात है |
पर जब भी ऊपर देखा ,
पाया , इश्वर तू मेरे साथ है |
अब तक जितनी बिगड़ी ,
बनी मेरी बात है |
पूरी और पूरी तरह ,
इसमें तेरा हाथ है |
जितना कुछ पाया जीवन में ,
सब तेरी सौगात है |
कुछ खोने पर कोस देता हूँ तुझे ,
कितनी आपस की बात है !
तुच्छ हूँ बहुत मैं ,
मेरी क्या औकात है ?
जो भी हूँ ,इसलिए हूँ ,
क्यूंकि तू मेरे साथ है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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