शांत कभी , कभी तूफ़ान सी ,
कितने रूप लिए हैं लहरें ?
कभी रेंगती , कभी उफनती ,
ना ना स्वरुप लिए हैं लहरें |
इनके तेज़ से न घबराना ,
यह बस इनका प्यार है |
भंवर बनते जो कहीं ,
वह प्यार का इकरार है |
इनके बीच जो कोई जाता ,
आदर भाव से बुलाती हैं |
भर भर कर आलिंगन में ,
मस्ती में झुलाती हैं |
रोके ना रूकती यह ,
तो बस बह जाती हैं|
रुकना नही , चलना है जीवन ,
हमको यह समझाती हैं |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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