देख लिया बहुत , यूँही दूर दूर से ,
वह मंजिल पाने की , अब कसक उठ आई है \\
चलते चलते लगता , वह नज़र आई है ,
पथराई आंखों में एक चमक नज़र आई है \\
मुरझाये से चेहरे पर , थोडी सी दमक आई है ,
मुझसे तेज़ चलने लगी , अब मेरी परछाई है \\
क्या लोग थे वे , जो पहुंचे वहां तक ,
मेरी तो अभी से ही , साँस फूल आई है \\
इस पर ही सब्र करता हूँ की ,
राह चाहे जैसी भी है , ग़लत नही ,
आख़िर इसमे मंजिल नज़र आई है \\
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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