क्या पता इन सबकी ,
प्यास कभी मिटनी है ?
इनकी कोई गिनती नही ,
मानव इच्छाएं कितनी हैं ?
बचपन से ही मानव ,
इच्छा पर इच्छा पाले जाता |
छोटे से बर्तन में ,
और और डाले जाता |
अपनी इच्छाएं लेकर ,
रात रात जागता रहता |
मृग तृष्णाये बनाकर उनको ,
उनके पीछे भागता रहता |
उतनी फिर से पैदा हो जाती ,
पूरी करता जितनी है |
मर जाता मानव , यह रह जातीं ,
मानव इच्छाएं कितनी हैं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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