रविवार, 3 मई 2009

फुक्ग्युं यख दिल्ली मा

हला भैजी कन छ ?
बदली छाई होली वख टीरी मा |
यखी त बस आग छ , फुन्कग्युं यख दिल्ली मा |

तनखा बिजां कम हुएगी , रेणा छन तंगी मा |
कोड मा खाज हुएगी , ऐ छोरा , एन मंदी मा |

कोई अपणु नि छ यख , सब मतलब का दगडी छन |
खूब खाई मिन धोखा , पर भैजी अब क्या कन ?

यख सुबेर सात बजेक बीटी , घनी घाम लग जांदी |
यख वख बाटा मा , सुंगर जाम लग जांदी |

जखी देखा , वखी सरा- सरी मच्युन छ |
पैसा का वास्ता , मारा मारी मच्युन छ |

यु माहौल मीतें , रास नि आणु छ |
फंड फुकी येतें , मी घौर आणु छ |

घौर एके , दाल भात खेके , रौला तस्सली मा |
कंदुडी पकड़दों , फुक्ग्युं यख दिल्ली मा |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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