कुछ समय मिले तो,
कागज़ , कलम उठा लेता हूँ |
मन में कुछ लिखने का ,
सहास जुटा लेता हूँ |
अक्षर अक्षर जोड़ ,
शब्द बना लेता हूँ |
इन शब्दों को मोड़ - तोड़ के ,
अर्थ बना लेता हूँ |
अर्थ सही लगने से,
भाव बन जाता है |
और समेट लेता हूँ ,
जो मेरे मन आता है |
इन सब को लेकर ,
एक लय में सजा लेता हूँ |
बस नाम इस कृति को देकर ,
एक कविता बना लेता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें