शनिवार, 25 अप्रैल 2009

साए से मुलाकात

आज बहुत दिन बाद , अपने साए से मुलाकात हुई |
साथ बैठ , कुछ इधर - उधर की बात हुई |

फुर्सत नही है तुम्हे आजकल , वो बात बात में पूछ बैठा |
मैं कुछ और शब्द उठा कर , यह मुद्दा बदल बैठा |

थोडी देर में , वो अपने रास्ते चला गया |
मुझे एक सवाल , बूझने के वास्ते दे गया |

सच में , कितना ख़ुद में सिमटता जा रहा हूँ |
स्लेट पे लिखी लकीर सा मिटता जा रहा हूँ |

पहचान बनाने के लिए , कितना घिस - पिघल रहा हूँ |
अपने ही साये से , मुद्दतों में मिल रहा हूँ |

यह कोशिश मेरी , गर कामयाब हो जाए |
हासिल वह मुकाम हो जाए |
कि दुनिया कहे ,बन्दे से नही , न सही ,
उसके साए से ही मुलाक़ात हो जाए |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

1 टिप्पणी:

  1. अच्छा लिखा है आपने और सत्य भी , शानदार लेखन के लिए धन्यवाद ।

    मयूर दुबे
    अपनी अपनी डगर

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