शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

तुझमें कुछ बात है |

दिन - दिन आकर चले गए ,
चलीं गई कई रात हैं |
जैसा था तू , वैसा ही है ,
तुझमें कुछ बात है |

चलने से तेरे , समय रेत पर ,
बन गए पद छाप हैं |
हवाएं चलीं बहुत लेकिन ,
आज भी वह साफ़ हैं |

तू चलता ही रह ,
राह चाहे जैसी रहे |
कुछ कर गुजरने की लौ ,
बस तुझमें जलती रहे |

अब जो तेरे साथ ,
आज भाग्य नही |
कोई बात नही ,
ये वक्त वक्त की बात है |

ऐसा पहले भी ,
हुआ बहुत बार है |
तू कर सकता है , तू कर लेगा ,
तुझमें कुछ बात है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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