आज थोडी देर , बैठ क्यों न साँस लूँ |
स्वयं से ही सही , बाँध थोडी आस लूँ |
राह ये जो , क्रूर है , मुझे थकाती जा रही |
यहाँ वहाँ तन पर मेरे , घाव लगाती जा रही |
जब चला था , न पता था , जाना इतना दूर है |
रस्ता बचा है बहुत अभी , मन थककर चूर है |
बार - बार उठ रहे दर्द को , हर बार दबाया है |
तिल - तिल टूट रहे मन को , कई बार ढाढस बंधाया है |
पल - पल लगता , धीरे - धीरे , दूरी बढती जा रही |
छोटी सी ये नाव मेरी , तूफ़ान से लड़ती जा रही |
अकेले ही अब , आगे कितने कोस चलूँ ?
थक गया हूँ , थोडी देर , बैठ क्यों न साँस लूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
बहुत सुन्दर भाव पूर्ण गीत है। बधाई।
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