सोमवार, 27 अप्रैल 2009

मानव एक मच्छर है |

बचपन में यह दूध पीता ,
लहू पीता बड़े होकर है |
काट काट कर छलनी करता ,
यह मानव एक मच्छर है |

चतुर बहुत है , वार हमेशा ,
घात लगा कर करता है |
खुश हो , गाना गाता मंद मंद ,
आघात लगा कर हँसता है |

गन्दगी में ही रह रह कर ,
ये फल फूल रहा है |
लोक लाज , समाज को ,
सदा के लिए भूल रहा है |

इसका काटा तुंरत न दिखता ,
दिखता आगे चलकर है |
कभी अकेला , कभी झुंड में ,
यह मानव एक मच्छर है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

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