बड़े बुजुर्गों ने जो बनाना चाहा,जिसके लिए मरते रहे |
देख रहे हम आज जिसे ,क्या ये वही भारत है ?
समस्या ही समस्या है ,सुविधायें नदारद हैं |
नेताओं को भ्रष्टता में ,हासिल महारत हैं |
गरीबी बढती जा रही ,नौकरी पाना एक महाभारत हैं |
गाँव और खेती का दृश्य , बहुत हृदय विदारक हैं |
हमारे घर आके , कोई हमे मार जाता हैं |
और पीछे से , सबूत माँगा जाता हैं |
आधी जनता का हम पेट नही भर पा रहे |
पर ऑस्कर में खुशी से , जय हो गा रहे |
हमारा भविष्य जाने किसके बूते हैं |
मंत्रियों पर उछल रहे जूते हैं |
जो राष्ट्र हम बनाने के लिए प्रयासरत रहे |
सोच कर देखो , क्या ये वही भारत हैं ?
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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