कभी ख़ुद से सवाल पूछा ,कि तू क्या चाहता है ?
पास जो तेरे वो कुछ नही , दूर जो , उसके पीछे भागता है |
कभी ये , कभी वो ,जाने क्या करना चाहता है ?
चोट लगती है कभी , तो बैठ कराहता है |
मन तो है ही चंचल ,वह उड़ना ही चाहता है |
लेकिन उसके पंख कतरने ,क्या तू नही जानता है ?
एक बार ढंग से सोच तो ले ,कि तू क्या चाहता है ?
फिर आने दे आगे तेरे ,जो भी आना चाहता है |
तीर चलाते सभी यहाँ , पर निशाना वही लगाता है |
जो मछली नही ,केवल उसकी आँख देखना चाहता है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें