सालों से इस धरती पर , पर्वत बन कर जड़ा है |
युग - युग आ कर चले गए |
यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |
नदियाँ , खनिज , बूटी सब देता , ह्रदय इसका विशाल बड़ा है |
सर्द हवाएं जो चुनौती देतीं , उनसे अकेला ही लड़ा है |
वर्षा हो हमारे घर में , इसलिए निर्भीक हो अड़ा है |
स्नेह , त्याग , बलिदान का , एक उदाहरण बड़ा है |
अभी तक बस लेते आए , कभी वापस कुछ करा है ?
नग्न होता जा रहा , संकट इस पर आ पड़ा है |
शांत दिखता जो बाहर , क्या पता अन्दर धधक रहा है ?
व्यथा कहता किस से अपनी , किसको इसका ध्यान पड़ा है ?
प्रलय आ सकती है धरा पर , गर यह बिफर पड़ा है |
हम बदल गए , यह न बदला |
यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |
जवाब देंहटाएं...badiya hai dabraal ji...
par dar to global warming ka hei...
"kab tak rahega safeed?"