मैं कोई कवि नही , बस यूँही कुछ लिख लेता हूँ |
अपने सूनेपन को , शब्दों से भर लेता हूँ |
प्यास मुझे कुछ करने की सो ,
ऐसे गला तर कर लेता हूँ |
बंजर से पड़े अपने मन को ,
फिर से हरा कर लेता हूँ |
खुशबू उठती धरती से ,
जब दो शब्द लिख लेता हूँ |
परमानन्द पा लेता हूँ जब ,
कहीं अपनी पंक्तियाँ सुन लेता हूँ |
मैं कोई कवि नही , बस यूँही कुछ लिख लेता हूँ |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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