प्रातः उठते स्वयं से ,
प्रश्न मैं यही करता |
क्या तैयारी पूर्ण है ?
लक्ष्य कितना दूर है ?
सघन स्पर्धा है बड़ी ,
परीक्षा अतिशय कड़ी |
सफल हो , क्या तू वह शूर है ?
लक्ष्य कितना दूर है ?
अपने प्रश्नों का उत्तर ,
सहज ही मैं पा जाता |
जुटा साहस , बढ़ा कदम चल ,
राह भले ही क्रूर है |
साँस लेना उतना चलकर ,
लक्ष्य जितना दूर है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
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