चैन नही एक भी पल , सोये में भी जाग रहा है |
आज वक्त से होड़ लगाए , हर कोई भाग रहा है |
आगे बढ़ाने को ख़ुद को , दूसरे का रास्ता काट रहा है |
अपने में ही सिमटा जा रहा , दूसरों से न वास्ता रहा है |
महत्वाकांक्षाएं इसकी जो भी हैं , वो हद से बढ़ी हैं |
सारी भावनाएं इसकी , इसी की भेंट चढ़ी हैं |
परिवार तो दूर ठहरा , ख़ुद के लिए भी अवकाश नही |
इस आपा - धापी में क्या खो रहा , इसका इसको एहसास नही |
प्राप्ति पर भी साँस न लेता , हाथ बढ़ा और मांग रहा है |
हलके भी चल सकता है , पर हर कोई भाग रहा है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ...........
जवाब देंहटाएंइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
-(बकौल मूल शायर)