एक महान लेखक ने लिखा ,
यह विश्व एक मंच है |
नाट्य यहाँ हर जीवन ,
आदि से अंत है |
हरेक मनुष्य अपना ,
निभा रहा किरदार है |
इस बड़े नाटक का ,
छोटा सा हिस्सेदार है |
लिखे विधाता ने जो शब्द ,
बस उन्ही को पढ़ रहा |
अपने अस्तित्व के लिए ,
इस मंच पर लड़ रहा |
कभी बैठा रोता रहता ,
कभी खुश हो हंस दे|
कई आते , कई जाते ,
यह विश्व एक मंच है |
अक्षत डबराल
"निःशब्द"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें