रविवार, 19 अप्रैल 2009

वो वहीँ खड़ा है

सालों से इस धरती पर , पर्वत बन कर जड़ा है |
युग - युग आ कर चले गए |
यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |

नदियाँ , खनिज , बूटी सब देता , ह्रदय इसका विशाल बड़ा है |
सर्द हवाएं जो चुनौती देतीं , उनसे अकेला ही लड़ा है |

वर्षा हो हमारे घर में , इसलिए निर्भीक हो अड़ा है |
स्नेह , त्याग , बलिदान का , एक उदाहरण बड़ा है |

अभी तक बस लेते आए , कभी वापस कुछ करा है ?
नग्न होता जा रहा , संकट इस पर आ पड़ा है |

शांत दिखता जो बाहर , क्या पता अन्दर धधक रहा है ?
व्यथा कहता किस से अपनी , किसको इसका ध्यान पड़ा है ?

प्रलय आ सकती है धरा पर , गर यह बिफर पड़ा है |
हम बदल गए , यह न बदला |
यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |

अक्षत डबराल
"निःशब्द"

1 टिप्पणी:

  1. यह हिमालय जहाँ था , बस वो वहीँ खड़ा है |

    ...badiya hai dabraal ji...

    par dar to global warming ka hei...

    "kab tak rahega safeed?"

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