बुधवार, 1 अप्रैल 2009

प्रेम

प्रेम बिन्दु है , प्रेम सिन्धु है ,
यह ठोस है , यह तरल है |
यह कठिन है , यह सरल है ,
सवालों का प्रत्यक्ष हल है |

प्रेम हृदयों का मेल ही नही ,
चंद दिनों का खेल नही |
यह अविरत बहती सरिता है ,
स्वयं मुग्धा कोई कविता है |

प्रेम वह सुरा जिसमे मद नही ,
इसकी कोई सीमा , कोई हद नही |
हर सम्बन्ध का आधार यही ,
रूप विभिन्न , आकार कई |

आज प्रेम का हो रहा ह्रास बड़ा ,
हर रिश्ता तनाव , अविश्वास भरा |
स्वर्ग धरा पर बना पायेंगे ,
जो इसे जीवित बचा पायेंगे |

अक्षत डबराल " निःशब्द "

2 टिप्‍पणियां:

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  2. the choice of words give it a musical flow in the first n third stanzas , gives it a flow of a song..the rest two makes it a verse....sheer delight to go thru it once ...n then you want to read it again to feel the music n the notes.....good job!

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